बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृतिसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-2 प्राचीन भारतीय इतिहात एवं संस्कृति - सरल प्रश्नोत्तर
प्रश्न- रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर-
रामगुप्त की ऐतिहासिकता
समुद्रगुप्त के पश्चात गुप्तों की वंशावली में चंद्रगुप्त द्वितीय का नाम उल्लिखित है, परन्तु दोनों शासकों के बीच रामगुप्त नामक एक दुर्बल शासक का अस्तित्व था या नहीं, यह एक विचारणीय प्रश्न है। विशाखदत्त कृत देवीचन्द्रगुप्तम् नामक नाटक में चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य से पूर्व रामगुप्त का गुप्त शासक के रूप में वर्णन किया गया है जिनके शासनकाल में शक आक्रमणकारियों ने ऐसी संकटपूर्ण स्थिति उत्पन्न कर दी थी कि रामगुप्त ने अपनी पत्नी ध्रुवदेवी (जिसके प्रति शकाधिपति आसक्त थे) को देकर शांति खरीदने का विचार किया। रामगुप्त की इस कायरता से क्षुब्ध होकर उसके छोटे भाई चंद्रगुप्त ने स्थिति को संभालने के उददेश्य से स्वयं ध्रुवदेवी का भेष बनाकर शक शिविर में जाने की योजना बनाई और जब इस प्रकार वह तथा उसके साथी शकाधिपति के पास स्त्री वेश में पहुँचे और शक शासक चंद्रगुप्त को ध्रुवदेवी समझ उसकी ओर बढ़ा तभी छद्दम वेषधारी चंद्रगुप्त ने शकराज की हत्या कर दी। इसके उपरान्त चंद्रगुप्त ने अपने कायर बड़े भाई की भी हत्या कर दी तथा गद्दी पर अधिकार कर लिया और ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया। इस घटना के तथ्य भारतीय नैतिक आदर्शों के इतने प्रतिकूल हैं कि अनेक विद्वानों ने इस कथा को सर्वथा काल्पनिक माना है। इस घटना का उल्लेख स्वाभाविक रूप से गुप्त लेखों में कहीं पर नहीं हुआ है, क्योंकि यह गुप्त वंश के लिए कोई गौरव का स्मरण करने लायक घटना नहीं थी। परन्तु इसका वर्णन हमें अनेक परवर्ती स्रोतों में प्राप्त होता है। बाण के हर्षचरित, राजशेखर के काव्यमीमांसा, राष्ट्रकूट अमोघ हर्ष के शक संवत् 795 के संजन ताम्रपत्र अभिलेख और गोविन्द चतुर्थ के सांगली व खम्भात ताम्रपत्रों में इस घटना का उल्लेख हमें प्राप्त होता है। इस घटना की सत्यता के आगे इतिहासकारों को अनिवार्यतः झुकना ही पड़ता है। रामगुप्त के कुछ ताँबे के सिक्के विदिशा तथा उदयगिरि से प्राप्त हुए है। उसके कुछ सिक्कों पर 'गरुड़' भी अंकित है, जिससे ताँबे के सिक्को वाला रामगुप्त गुप्तवंशीय शासक प्रतीत होता है। परन्तु रामगुप्त से पूर्व समुद्रगुप्त के या उसके बाद आने वाले चन्द्रगुप्त द्वितीय विक्रमादित्य के ताँबे के सिक्के प्राप्त न होने से उन सिक्कों के विषय में निर्णयात्मक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। रामगुप्त की समस्या का अधोपूर्ण समाधान नहीं हो पाया है। हालाँकि संभावना ऐसी ही प्रतीत होती है कि समुद्रगुप्त के उपरान्त रामगुप्त ने अल्पकाल के लिए गद्दी पर अधिकार कर लिया था। इस प्रकार रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर सन्देह नहीं किया जा सकता है। रामगुप्त को सिंहासन से पदच्युत करके समुद्रगुप्त का योग्य पुत्र चंद्रगुप्त द्वितीय शासक बना। उसका दूसरा नाम देवराज या देवगुप्त था, जैसा कि वाकाटक अभिलेखों व चन्द्रगुप्त द्वितीय के कुछ सिक्कों से जिन पर देवश्री लिखा है, से स्पष्ट है। गुप्त संवत् 61 का एक लेख प्राप्त होता है जो चन्द्रगुप्त द्वितीय के शासन काल के पंचम वर्ष में लिखवाया गया था। इससे उनके राज्यारोहण की तिथि निश्चित रूप से गुप्त संवत 56 ( 375-76 ई.) कही जा सकती है। अतः रामगुप्त की ऐतिहासिकता पर सन्देह व्यक्त नहीं किया जा सकता है। समुद्रगुप्त तथा चन्द्रगुप्त द्वितीय के मध्य अल्पकाल के लिए रामगुप्त गद्दी पर बैठा था, जिसे चन्द्रगुप्त द्वितीय ने मारकर गद्दी पर अधिकार कर लिया था तथा उसकी विधवा ध्रुवदेवी से विवाह कर लिया। इस प्रकार रामगुप्त गुप्त वंश में एक अल्पकालीन शासक बना था।
भण्डारकर महोदय ने काच नमक शासक का समीकरण रामगुप्त के साथ करते है। भण्डारकर का मत था कि काचगुप्त चन्द्रगुप्त नाटक में इसका नाम 'रामगुप्त' लिखा गया था। दूसरे शब्दों में रामगुप्त को काचगुप्त समझना चाहिए। अल्तेकर ने इसी मत को मुद्रा- साक्ष्य के आधार पर सिद्ध करने की चेष्टा की है - काच की मुद्राओं में समुद्रगुप्त की मुद्राओं की अपेक्षा अधिक मौलिकता है। मौलिकता मुद्राकारों की अनुभव तथा निपुणता के साथ आती है। अतः काच की मुद्राएँ समुद्रगुप्त के पश्चात् बनी होगी। इस प्रकार उसका समीकरण. रामगुप्त के साथ किया जा सकता है राखालदास बनर्जी, अल्तेकर, मिराशी और प्रो. कृष्ण दत्त बाजपेयी आदि विद्वान रामगुप्त को ऐतिहासिक व्यक्ति मानते हैं। बनर्जी, जायसवाल, दांतेकर, प्रो. मिराशी आदि विद्वान् रामगुप्त के समकालीन शक नरेश को पश्चिमोत्तर प्रदेश का शासक मानते है। अभी हाल ही में श्री. जी. एस. गईं ने बेसनगर के समीप दुर्जनपुर में तीन जैन मूर्तियाँ प्राप्त की है। ये मूर्तियाँ ब्रिटिश संग्राहालय में स्थित है। इस लेखों में रामगुप्त को 'महाराजाधिराज' कहा गया है। इनसे रामगुप्त की ऐतिहासिकता की पुष्टि हो जाती है। तीन जैन मूर्तियाँ से रामगुप्त का जैन होना सिद्ध होता है, नहीं होता तथा यह सीमित साक्ष्य हैं।
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